मारवाड़ के रियासत कालीन समय से प्रसिद्ध कहावत चली आ रही है “मारवाड़ के ढ़ाई घर”
मारवाड़ के ढ़ाई घर जिसमें से एक घर रिया सेठ, एक घर बिलाड़ा दीवान एवं आधा घर जोधपुर दरबार को गिना गया था ऐसा सुना जाता है की उस समय जोधपुर दरबार को धन की आवश्यकता पड़ी थी तो वे रिया सेठ के पास पहुंचे और कहा की राजकोष में धन की कमी हो गई है और मैं आपके पास सहायता के लिए आया हूं तब रिया सेठ ने कहा की आपको जितनी सहायता की जरूरत है वह मिल जाएगी और सांत्वना देकर जोधपुर दरबार को विदा किया फिर रिया सेठ ने सोने की मोहरे बैल गाड़ियों में भरकर भेजना शुरू किया और रिया से जोधपुर तक सोने की मोहर से भरी गाड़ी से गाड़ी जोड़ दी.
इसी तरह से जोधपुर दरबार बिलाड़ा दीवान के पास गए थे और उनसे भी सहायता मांगी थी बिलाड़ा दीवान को आई माता का ईस्ट था और बिलाड़ा दीवान ने कुए पर बैलों को जोड़कर अर्ट चलाना शुरू किया तो पानी की जगह हीरे जवाहरात आने लगे और जोधपुर दरबार की सहायता की उस समय से यह कहावत प्रसिद्ध है कि मारवाड़ में पूरे ढ़ाई घर है
उस समय रिया के सेठ जीवन दास जी मुनोट थे उनकी याद में उनके ऊपर बनी हुई यह छतरी आज भी उनकी याद दिलाती है इसके पास में पग बावड़ी जिसको मीठी बावड़ी के नाम से जाना जाता है एवं साथ में एक शिव मंदिर है और यह रिया की पहचान है